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संसद का मानसून सत्र इस बार भी राजनीतिक उठापटक और विरोध-प्रदर्शन की घटनाओं से भरा रहा है। खासकर एसआईआर (Special Investigation Report), पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील विषयों को लेकर विपक्षी दलों ने लगातार सरकार पर निशाना साधा है। इन मुद्दों को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में विपक्ष ने हंगामा किया, जिससे सदन की कार्यवाही लगातार बाधित होती रही। तीसरे दिन भी सदन में विपक्ष की तीव्र प्रतिक्रिया के चलते दोनों सदनों को दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित करना पड़ा।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि विपक्ष के नेताओं को बोलने का अधिकार होना चाहिए, लेकिन सरकार उन्हें चर्चा करने से रोक रही है। राहुल गांधी ने स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच जारी सीजफायर के पीछे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का योगदान है और यह तथ्य छुपाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा, "यह केवल एसआईआर की समस्या नहीं है, पूरे देश की स्थिति खराब है और हमें इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा करने की जरूरत है।"
राहुल गांधी ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भी सवाल उठाए और कहा कि केवल यह ऑपरेशन ही नहीं, बल्कि भारतीय सेना को लेकर कई अन्य गंभीर समस्याएं भी हैं जिन पर बात करने की अनुमति नहीं दी जा रही। विपक्ष की ओर से चर्चा की मांग लगातार की जा रही है, लेकिन सरकार इसे टालती नजर आ रही है।
इस बीच, राहुल गांधी ने सरकार के देशभक्ति के दावों को भी चुनौती दी और कहा कि जो लोग खुद को देशभक्त कहते हैं, वे असल में देश के सामने खड़े मुद्दों से भाग रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ट्रंप ने कई बार दावा किया कि उन्होंने सीजफायर करवाया है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसका जवाब देने की बजाय चुप्पी साध रखी है। राहुल गांधी ने कहा, "ट्रंप ने 25 बार कहा कि मैंने सीजफायर करवाया है, लेकिन पीएम ने एक बार भी इस पर टिप्पणी नहीं की। ऑपरेशन सिंदूर पर प्रधानमंत्री का जवाब भी उतना ही जारी है जितना कि वह ऑपरेशन। इसका मतलब है कि दाल में कुछ तो काला है।"
विपक्ष की ओर से मांग की जा रही है कि इन गंभीर मुद्दों पर संसद में खुलकर चर्चा हो। राहुल गांधी ने कहा कि चर्चा की मांग पर कहा गया है कि प्रधानमंत्री के वापस आने पर ही यह हो पाएगी, जो एक प्रकार से मुद्दे को टालने जैसा है। इससे साफ है कि सत्ता पक्ष इन मुद्दों पर बात करने से कतरा रहा है।
संसद में इस तरह की हंगामेबाजी के बीच कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम भी सामने आए हैं। गुजरात एटीएस ने अलकायदा से जुड़े चार आतंकियों को गिरफ्तार किया है, जिनका दिल्ली और नोएडा से भी कनेक्शन बताया गया है। यह गिरफ्तारी आतंकवाद के खिलाफ जारी सुरक्षा कड़े इंतजामों की पुष्टि करती है।
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में स्पष्ट किया कि दिल्ली में पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सरकार का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) का आदेश है। उन्होंने कहा कि यह आदेश एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आधार पर लागू किया गया है।
संसद में 29 जुलाई से ऑपरेशन सिंदूर पर बहस भी शुरू होगी, जो लगभग 16 घंटे तक चलेगी। इस बहस में सभी राजनीतिक दलों को अपने-अपने विचार रखने का मौका मिलेगा। यह बहस देश की सुरक्षा और सेना की स्थिति को लेकर महत्वपूर्ण साबित होगी।
मानसून सत्र की इन घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि विपक्ष सरकार की नीतियों और सुरक्षा मामलों पर सवाल उठाने से पीछे नहीं हटेगा। साथ ही यह भी दिखाता है कि राजनीतिक समीकरण और संवेदनशील मुद्दों को लेकर संसद में गंभीर बहस होनी जरूरी है, जिससे जनता को सही जानकारी मिल सके और देश के हित में सही निर्णय लिए जा सकें।
वर्तमान परिस्थितियों में राजनीतिक संवाद और पारदर्शिता की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। देश की सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता के मुद्दे ऐसे हैं जिन पर एकजुट होकर विचार-विमर्श होना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की भ्रांतियों या गलतफहमियों को दूर किया जा सके। संसद का मानसून सत्र इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मंच हो सकता है, यदि सभी दल अपनी जिम्मेदारी समझते हुए मुद्दों को राष्ट्रीय हित में रखते हुए चर्चा करें।
इस प्रकार, संसद में चल रहे विरोध-प्रदर्शन और बहसें भारतीय लोकतंत्र की जिंदा प्रक्रिया का हिस्सा हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में सभी राजनीतिक दल रचनात्मक संवाद और समाधान की ओर कदम बढ़ाएंगे, जिससे देश की सुरक्षा और विकास के मार्ग में बाधाएं दूर होंगी।